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सांविधानिक विधि
उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति
« »04-Jul-2024
सीए राकेश कुमार गुप्ता बनाम महासचिव के माध्यम से भारत का उच्चतम न्यायालय “उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिये उच्च न्यायालय कॉलेजियम की अनुशंसा को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अस्वीकार करने का कारण उन न्यायाधीशों के हित में नहीं होगा जिनके नाम, उच्चतम न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दिये गए हैं”। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अनमोहन एवं न्यायमूर्ति तुषार राव |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीए राकेश कुमार गुप्ता बनाम महासचिव के माध्यम से भारत के उच्चतम न्यायालय के मामले में माना है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की उच्च न्यायालय में पदोन्नति के लिये उच्च न्यायालय कॉलेजियम की अनुशंसा को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा मना करने का कारण उन न्यायाधीशों के हित में नहीं होगा जिनके नाम उच्चतम न्यायालय द्वारा मना कर दिये गए हैं।
सीए राकेश कुमार गुप्ता बनाम महासचिव के माध्यम से भारत के उच्चतम न्यायालय के मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता का दिल्ली ज़िला न्यायालय में एक मामला लंबित था, जिसके कारण उसने एकल न्यायाधीश पीठ के समक्ष रिट याचिका दायर की।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति न होने का कारण उच्चतम न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिये।
- उनका तर्क है कि देश में न्यायाधीशों की कमी के कारण मामलों की संख्या लंबित है।
- याचिकाकर्त्ता ने कहा कि उसके पास रिट याचिका दायर करने का अधिकार है।
- संबंधित एकल न्यायाधीश पीठ ने अधिकार न होने के कारण रिट को खारिज कर दिया तथा याचिकाकर्त्ता पर अर्थदण्ड लगाया।
- विवादित निर्णय के अनुसरण में याचिकाकर्त्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के दो पहलू हैं, एक पात्रता एवं दूसरा उपयुक्तता।
- पात्रता का निर्धारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार किया जाना है, जबकि उपयुक्तता का निर्धारण परामर्श एवं अवलोकन के आधार पर किया जाना है।
- इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि जिन न्यायाधीशों के नाम उच्च न्यायालय ने भेजे थे, उनकी नियुक्ति न करने के कारणों का प्रकटन उनके हितों के लिये हानिकारक होगा।
- इसके आधार पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के निर्णय को यथावत् रखा तथा कहा कि याचिकाकर्त्ता के पास रिट दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 271 (COI) क्या है?
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति एवं पद की शर्तें:
- उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, राज्य के राज्यपाल एवं मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की स्थिति में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श के पश्चात् राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर व मुहर सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा तथा वह [अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की स्थिति में अनुच्छेद 224 के अनुसार एवं किसी अन्य स्थिति में तब तक पद धारण करेगा जब तक वह [बासठ वर्ष] की आयु प्राप्त नहीं कर लेता]:
- शर्ते कि—
- कोई न्यायाधीश राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
- किसी न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिये अनुच्छेद 124 के खंड (4) में उपबंधित तरीके से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
- किसी न्यायाधीश का पद राष्ट्रपति द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने पर या राष्ट्रपति द्वारा उसे भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किये जाने पर रिक्त हो जाएगा।
- कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये तभी योग्य होगा जब वह भारत का नागरिक हो तथा—
- भारत के राज्यक्षेत्र में कम-से-कम दस वर्ष तक न्यायिक पद पर रहा हो; या (ख) किसी उच्च न्यायालय या दो या अधिक ऐसे न्यायालयों में लगातार कम-से-कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो;
- स्पष्टीकरण— इस खंड के प्रयोजनों के लिये—
- भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति द्वारा न्यायिक पद धारण करने की अवधि की संगणना करने में, कोई न्यायिक पद धारण करने के पश्चात् की वह अवधि सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान वह व्यक्ति किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद या संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिये विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है।
- किसी व्यक्ति द्वारा उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान उस व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात् 3 [न्यायिक पद या किसी अधिकरण के सदस्य का पद या संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिये विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है]।
- किसी व्यक्ति द्वारा भारत के राज्य क्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने या किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की गणना करने में, इस संविधान के प्रारंभ से पहले की वह अवधि सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान उसने किसी ऐसे क्षेत्र में न्यायिक पद धारण किया है, जो, यथास्थिति, भारत शासन अधिनियम, 1935 द्वारा भारत के 15 अगस्त, 1947 के पूर्व समाविष्ट था, या किसी ऐसे क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रह रहा है।
- यदि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की आयु के संबंध में कोई प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का निर्णय भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा तथा राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होगा।
वर्तमान मामले में उल्लिखित महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या है?
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत संघ (1993): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि न्यायिक समीक्षा का दायरा नियुक्ति के लिये खुला है, लेकिन एक कॉलेजियम में कई न्यायाधीश होते हैं, जिससे किसी भी प्रकार की मनमानी की संभावना नहीं रहती तथा निष्पक्ष प्रक्रिया उपलब्ध होती है।